कुर्सी के कीड़े और देश का भविष्य

“कुर्सी पर जो बैठे, उसे याद दिलाओ, ये सेवा का धर्म है, स्वार्थ हटाओ।”

हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार जनता का विश्वास और प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है। जनसेवा के इस आदर्श को लेकर राजनीतिक तंत्र की स्थापना हुई थी, लेकिन समय के साथ यह व्यवस्था एक ऐसे ढांचे में बदल गई है जहां “कुर्सी के कीड़े” अपनी स्वार्थपूर्ति में जुटे हुए हैं। यह शब्दावली केवल एक व्यंग्य नहीं, बल्कि उस सच्चाई का प्रतीक है जो देश की प्रगति और व्यवस्था को भीतर ही भीतर खोखला कर रही है।

राजनीति में स्वार्थ की प्रवृत्ति

राजनीति का उद्देश्य जनहित की पूर्ति है। लेकिन सत्ता का आकर्षण और कुर्सी का मोह, कई बार जनप्रतिनिधियों को उस मार्ग से भटका देता है जो देश की उन्नति की ओर ले जाता। कुर्सी के इन कीड़ों का एकमात्र उद्देश्य सत्ता में बने रहना और अपने हितों को साधना होता है। इनकी नीति में समाज कल्याण से अधिक व्यक्तिगत स्वार्थ, भ्रष्टाचार और शक्तियों का दुरुपयोग शामिल होता है।

ये कीड़े न केवल शासन व्यवस्था को प्रभावित करते हैं, बल्कि जनता के विश्वास को भी चोट पहुंचाते हैं। ये स्वार्थी तत्व किसी भी नीति या योजना को जनता के लाभ के लिए नहीं, बल्कि अपनी कुर्सी को मजबूत करने के लिए ढालते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि देश के विकास की रफ्तार धीमी हो जाती है, और जनता की समस्याएं अनदेखी रह जाती हैं।

लोकतंत्र की नींव पर खतरा

लोकतंत्र का आधार जनता का विश्वास और पारदर्शिता है। जब जनप्रतिनिधि अपने स्वार्थ के लिए इस विश्वास को तोड़ते हैं, तो इसका प्रभाव केवल सरकार तक सीमित नहीं रहता, बल्कि समाज के हर वर्ग में निराशा और असंतोष पैदा करता है। जनता के मन में यह भावना घर कर लेती है कि उनके अधिकार केवल चुनाव के समय तक सीमित हैं और उसके बाद उनकी आवाज अनसुनी रह जाती है।

इस स्थिति में सबसे बड़ा नुकसान उन कमजोर और पिछड़े वर्गों का होता है, जिनके पास अपनी समस्याओं को उठाने का कोई मजबूत माध्यम नहीं होता। राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार और स्वार्थ की इस बीमारी से गरीबों की हालत और भी दयनीय हो जाती है।

समाज पर प्रभाव

कुर्सी के कीड़ों की हरकतें समाज में एक विषैला माहौल बनाती हैं। जब जनता बार-बार भ्रष्टाचार, झूठे वादों और अपूर्ण योजनाओं का शिकार होती है, तो समाज में अराजकता और आक्रोश पनपने लगता है। एक ऐसा माहौल तैयार होता है, जहां लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए कानून को अपने हाथ में लेने से भी नहीं हिचकिचाते।

इसका असर केवल आज पर नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों पर भी पड़ता है। युवाओं में बेरोजगारी और अवसरों की कमी उन्हें गलत रास्तों पर धकेल देती है। देश की जड़ों में लगा यह कीड़ा भविष्य के लिए भी एक गंभीर खतरा है।

समाधान की दिशा में प्रयास

इन कुर्सी के कीड़ों से छुटकारा पाने के लिए केवल आलोचना पर्याप्त नहीं है। इसके लिए समाज को संगठित होकर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

1. जागरूक नागरिक बनें:
जनता को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग रहना होगा। चुनाव के समय नेताओं के इतिहास, उनकी योजनाओं और उनके कामकाज का आकलन करना बेहद जरूरी है।

2. पारदर्शिता सुनिश्चित करें:
सरकार और प्रशासन के कामकाज में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कड़े कानून और नियम लागू होने चाहिए। हर योजना और परियोजना की निगरानी की व्यवस्था होनी चाहिए।

3. शिक्षा और नैतिकता का प्रचार:
शिक्षा केवल डिग्री तक सीमित न रहकर नैतिकता और ईमानदारी के मूल्यों को बढ़ावा देने वाली होनी चाहिए। एक शिक्षित समाज ही इन कुर्सी के कीड़ों को पहचान सकता है।

4. सच्चे नेताओं को समर्थन:
जनता को ऐसे नेताओं का समर्थन करना चाहिए, जिनका उद्देश्य देश और समाज की सेवा है। इससे राजनीति का स्वरूप बदलेगा और सत्ता में ईमानदार लोग आएंगे।

आशा और बदलाव की संभावना

“कुर्सी के कीड़े” कोई स्थायी समस्या नहीं हैं। इन्हें मिटाने के लिए जरूरी है कि हम अपने अंदर बदलाव लाएं। जब हर नागरिक जागरूक होकर अपने अधिकारों का उपयोग करेगा, भ्रष्टाचार और स्वार्थ की इस बीमारी का अंत होगा।

आने वाले समय में हमें एक ऐसा भारत बनाना होगा, जहां कुर्सी जनसेवा का प्रतीक हो, न कि स्वार्थ और भ्रष्टाचार का। अगर हम संगठित होकर काम करें, तो यह सपना जरूर सच होगा। क्योंकि जब जनता जागती है, तो सबसे बड़ी ताकत बन जाती है।

आकाश सक्सेना
प्रधान संपादक
R.हिंदुस्तान न्यूज चैनल

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Author: R Hindustan

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