उत्तर प्रदेश के संभल जिले में 24 नवंबर को हुई हिंसा के बाद स्थिति काबू में है। जिले के डीएम डॉ. राजेंद्र पेंसिया ने 10 दिसंबर तक जिले में धारा 163 लागू कर दी है। इसके तहत 5 या उससे अधिक लोगों के इकट्ठा होने, रैली, धरना-प्रदर्शन और घेराव पर सख्त प्रतिबंध लगाया गया है। हालांकि, विवाह, शव यात्रा और सरकारी कार्यक्रमों को इससे छूट दी गई है।
घटना के बाद प्रशासनिक सख्ती
हिंसा के कारण जिले में तनाव का माहौल है। स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए प्रशासन ने यह कदम उठाया है, लेकिन इस फैसले ने कई सवाल खड़े किए हैं:
1. क्या धारा 163 के तहत प्रतिबंधों से असामाजिक गतिविधियों पर रोक लग सकेगी?
2. क्या इस फैसले से नागरिक स्वतंत्रता प्रभावित नहीं होगी?
3. क्या हिंसा रोकने में प्रशासन पहले नाकाम रहा?
प्रशासन के आदेश का दायरा
डीएम राजेंद्र पेंसिया ने स्पष्ट किया कि धारा 163 के तहत:
5 या उससे ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर रोक है।
सभी प्रकार की रैली, धरना-प्रदर्शन और घेराव पर प्रतिबंध रहेगा।
विवाह, शव यात्रा और यूपी सरकार के कार्यक्रमों को इन प्रतिबंधों से छूट दी गई है।
जनता की प्रतिक्रिया
प्रशासन के इस फैसले पर जनता और विपक्षी दलों के बीच बहस जारी है:
क्या यह आदेश शांति स्थापित करने में पर्याप्त है?
क्या सरकारी कार्यक्रमों को छूट देना निष्पक्ष है?
क्या यह निर्णय जनता की स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाता?
घटना के पीछे की कहानी
24 नवंबर को हुई हिंसा ने जिले में कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए थे। समय पर कदम उठाने में प्रशासन की भूमिका पर भी उंगलियां उठ रही हैं।
महत्वपूर्ण सवाल:
1. क्या धारा 163 लागू करना प्रशासन की सतर्कता का प्रमाण है, या केवल एक औपचारिकता?
2. क्या इस फैसले से स्थानीय लोगों में आक्रोश बढ़ सकता है?
3. क्या इस कदम से हिंसा के असली कारणों की अनदेखी हो रही है?
संभल में धारा 163 लागू होने से शांति स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। लेकिन, यह फैसला क्या वाकई कारगर साबित होगा, या नागरिक स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाएगा?
